तकलीफ ये नहीं कि तुम्हें अज़ीज़ कोई और है !! दर्द तब हुआ जब हम नजरंदाज किए गए !!
दुआ करना दम भी उसी तरह निकले !! जिस तरह तेरे दिल से हम निकले !!
जा और कोई दुनिया तलाश कर लेना !! ऐ इश्क़ मैं तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहा !!
खामोशियाँ कर देतीं बयान तो अलग बात है !! कुछ दर्द हैं जो लफ़्ज़ों में उतारे नहीं जाते !!
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जो ज़ाहिर हो जाए वो दर्द कैसा !! और जो खामोशी न समझ सके वो हमदर्द कैसा !!
वो सुना रहे थे अपनी वफाओ के किस्से !! हम पर नज़र पड़ी तो खामोश हो गए !!
फुर्सत में जब किसी की याद आती है !! कसम से बहुत रुलाती है !!
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बस यूँ उम्र कटी दो अल्फ़ाज़ में !! एक आस में दूसरी काश में !!
शहर ग़ैर हो चुका है !! तुम ग़ैर हुये तो क्या हुए !!
इतना दर्द तो मौत भी नही देती !! जितना दर्द तेरी ख़ामोशी मुझे दे रही है !!
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