Sharab Shayari
अब तो उतनी भी बाकी नहीं मय-ख़ाने में !!
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में !!
तुम्हारी बेरूखी ने लाज रख ली बादाखाने की !!
तुम आंखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते !!
तबसरा कर रहे हैं दुनिया पर !!
चदं बच्चे शराब खाने में !!
शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूं !!
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया !!
दिखा के मदभरी आंखें कहा ये साकी ने !!
हराम कहते हैं जिसको यह वो शराब नहीं !!
मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-मय से !!
तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहेंगे !!
बस एक इतनी वजह है मेरे न पीने की !!
शराब है वही साक़ी मगर गिलास नहीं !!
मुखातिब हैं साकी की मख्मूर नजरें !!
मेरे जर्फ का इम्तिहाँ हो रहा है !!
टूटे तेरी निगाह से अगर दिल हबाब का !!
पानी भी फिर पिएं तो मज़ा दे शराब का !!
थोड़ी सी पी शराब थोड़ी उछाल दी !!
कुछ इस तरह से हमने जवानी निकाल दी !!
तेरी निगाह थी साक़ी कि मैकदा था कोई !!
मैं किस फ़िराक में शर्मिंदा-ए-शराब हुआ !!
आज इतनी पिला साकी के मैकदा डुब जाए !!
तैरती फिरे शराब में कश्ती फकीर की !!
मैकदे लाख बंद करें जमाने वाले !!
शहर में कम नहीं आंखों से पिलाने वाले !!
एसी शराब पी है कि इक दिन मेरा निशां !!
मस्जिद में खानकाह में ढूँढा करेंगे लोग !!
पीने से कर चुका था मैं तौबा दोस्तों !!
बादलो का रंग देख नीयत बदल गई !!
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